गुना जिला अस्पताल से आज ऐसी तस्वीर सामने आई जिसने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली को सामने लाकर रख दिया। सड़क हादसे में जान गंवाने वाले बंटी लोधा निवासी बाबड़ी खेड़ा दोराना का पोस्टमार्टम तो सुबह कर दिया गया, लेकिन इसके बाद शव के साथ जो अमानवीय व्यवहार हुआ, उसने मानवता को झकझोर कर रख दिया। अस्पताल कर्मचारियों ने पीएम रूम में ताला जड़ दिया और शव को बाहर गैलरी में रख दिया।
परिजन शव के पास घंटों बेसहारा बैठे रहे। एंबुलेंस के लिए सुबह फॉर्म भर दिया गया था, पर कई घंटे तक इंतजार के बावजूद वाहन नहीं आया। परिजन अधिकारियों और एंबुलेंस चालक को लगातार फोन करते रहे, लेकिन मदद के बजाय उन्हें बेरुखी और बदसलूकी का सामना करना पड़ा। देर से पहुंचे ड्राइवर ने भी परिजनों से अभद्रता की और मदद करने के बजाय ठेकेदार से बात करने को कह दिया।
इस पूरे घटनाक्रम में जिला अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही और असंवेदनशीलता खुलकर सामने आई। परिजनों का दर्द छलक उठा — "जिला अस्पताल खुद बीमार हो चुका है, यहां गरीबों की कोई सुनवाई नहीं।"
इस मामले को लेकर जब सिविल सर्जन वी.एस. रघुवंशी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि,
"पोस्टमार्टम के बाद शव को गैलरी में रखा गया था। मेरी जानकारी में आने पर पीएम करने वाले ने बताया कि अटेंडर द्वारा लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि शव को बाहर रखा जाए, जिसके चलते शव को गैलरी में रखा गया। वहीं, एंबुलेंस देर से पहुंचने का कारण यह था कि पुराने चालक के स्थान पर एक नए चालक को भेजा गया था, जिसे पहुंचने में देरी हो गई। नए ड्राइवर ने परिजनों से सही व्यवहार नहीं किया, जो गलत है। हालांकि मैं मानता हूं कि जब तक गाड़ी नहीं आती, शव को बाहर नहीं रखना चाहिए था। यह गलती पहली बार हुई है और आगे से ऐसी स्थिति नहीं दोहराई जाएगी।"
हालांकि सिविल सर्जन ने गलती को स्वीकार किया है, लेकिन बड़ा सवाल बना हुआ है —
गरीबों की लाशों के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार आखिर कब तक?क्या जिम्मेदारी तय होगी या फिर कोई नई घटना का इंतजार होगा ?
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